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ड्रिप सिंचाई

किसान करे कैवेंडिश केले समूह के केले की खेती, शानदार कमाई के बाद भूल जायेंगे धान-गेहूं उपजाना

किसान करे कैवेंडिश केले समूह के केले की खेती, शानदार कमाई के बाद भूल जायेंगे धान-गेहूं उपजाना

केले की खेती (Kele ki kheti / Banana Farming) एक ऐसी चीज है जिस पर आपको विचार करना चाहिए। यदि आप कम जमीन होने के बावजूद भी महत्वपूर्ण लाभ कमाना चाहते हैं, तो कैवेंडिश (Cavendish banana) समूह के केलों की खेती करना शुरू कर दें। केले की खेती कभी दक्षिण भारत तक सीमित थी, लेकिन अब यह उत्तर भारत में व्यापक रूप से प्रचलित हो रही है। एक हेक्टेयर में केले की खेती से करीब 8 लाख रुपये का मुनाफा कमाया जा सकता है। बाजार में सुपरफूड की मांग काफी बढ़ गई है। किसान अब धान-गेहूं और अन्य फसलों कि जगह फल और फूलों की खेती करने लगे हैं, ऐसे में केले की खेती कर किसान अपनी उपज पर अधिक फायदा प्राप्त कर सकते हैं। केले विटामिन, खनिज, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होते हैं, और इनमें वसा की मात्रा भी कम होती है। किसान केले कि खेती में अधिक रुचि ले रहे हैं क्योंकि बाजार में इसकी मांग बहुत ही तेजी से बढ़ रहीं हैं।

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कॉवेंडिश या कैवेंडिश समूह का केला, जो ड्रिप सिंचाई और अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से प्रति इकाई क्षेत्र में उपज पर काफ़ी ज्यादा लाभ देता है। किसानों द्वारा कैवेंडिश केले को अब लगभग 60% क्षेत्र में उगाया जा रहा है, इसका मुख्य कारण पनामा विल्ट रोग (Panama disease or Fusarium wilt or Bana Wilt) के प्रति इसकी प्रतिरोध क्षमता है और यह अन्य केलों के समूह की तुलना में कहीं अधिक उत्पादन करता है। भारत में केले की लगभग 20 प्रजातियां उगाई जाती हैं।

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केले की लगभग 1000 से अधिक किस्मों को दुनिया भर में उगाया जाता है। कॉवेंडिश समूह का केला अपने छोटे तनों के कारण, तूफान से होने वाले नुकसान जैसे पर्यावरणीय कारकों के प्रति कम संवेदनशील होते हैं और प्रति हेक्टेयर उच्च पैदावार देते हैं। कॉवेंडिश केले के पौधे प्राकृतिक आपदाओं से तेजी से उबरने के लिए भी प्रसिद्ध है। कैवेंडिश केले का वार्षिक वैश्विक उत्पादन लगभग 50 बिलियन टन है। आम के बाद केला भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फलों में से एक है, लगभग 14.2 मिलियन टन के वार्षिक उत्पादन के साथ, भारत केले के उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है। कॉवेंडिश समूह का केले की इस प्रजाति को पारंपरिक रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर-पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है।

कैवेंडिश समूह की किस्म ग्रैंड नैने (एएए) की करें खेती

केले के प्रसिद्ध कैवेंडिश समूह की एक किस्म को "ग्रैंड नैने (एएए)" कहा जाता है। यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है। इसका पौधा 6.5 से 7.5 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। ग्रैंड नैन केले किस्म के फल खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और इसकी फलों की गुणवत्ता हमारी देशी किस्मों के केलों की तुलना में अधिक होती है।

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1990 के दौरान यह प्रजाति भारत में आई थी, इस प्रजाति के आते ही बसराई और रोबस्टा प्रजाति का विस्थापन होना शुरू हो गया। कैवेंडिश किस्म का यह केला महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों के बीच बेहद पसंद किया जाता है, इस प्रजाति के पौधे 12 महीनों में परिपक्व हो जाते हैं और 2.2 से 2.7 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचते हैं। इसकी खेती कर किसान कम समय में अधिक मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। केले पहले केवल दक्षिण भारत में उगाए जाते थे, लेकिन अब वे उत्तर भारत में भी उगाए जा रहे हैं। केले की खेती करने वाला किसान पारंपरिक खेती जैसे गेहूं-धान-गन्ना की खेती करना छोड़ ही देता है, क्योंकि केले की खेती से एक वर्ष में होने वाले लाभ को कई वर्षों तक गेहूं-धान-गन्ना के खेती से पूरा नहीं किया जा सकता है।

केले कब और कैसे उगाए जाते हैं?

जून-जुलाई का महीना केले लगाने का सबसे अच्छा समय है, कुछ किसान इसे अगस्त तक लगाते हैं। इसे जनवरी और फरवरी में भी उगाया जाता है। यह फसल 12-14 महीने में पूरी तरह से पक जाती है। केले के पौधे को लगभग 8*4 फीट की दूरी पर लगाना चाहिए और ड्रिप सिंचाई का उपयोग करना चाहिए। एक हेक्टेयर में 3000 तक केले के पौधे लगाए जाते हैं। केले के पौधे नम वातावरण में पनपते हैं और उनमें अच्छी तरह विकसित होते हैं। जब केले में फल लगने लगे तो फलों की सुरक्षा के लिए सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वे गंदे न हों और कीड़े नही लगे इसका ध्यान रखना चाहिए, केला बीजों से नहीं बल्कि पौधे को लगा कर इसकी खेती की जाती है। केले के पौधे आपको कई जगहों पर मिल जाएंगे आप इसे नर्सरी कृषि विज्ञान केंद्र से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, दूसरा आप केले की उन्नत किस्में प्रदान करने वाली कंपनियों से सीधे बात कर सकते हैं, जो आपके घर तक केले के पौधे पहुंचाएगी।

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वहीं सभी राज्य सरकारें भी केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए पौधे उपलब्ध कराती हैं इसलिए आप अपने जिले के कृषि विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं, तो आप यदि एक नया कृषि व्यवसाय शुरू करने के इच्छुक हैं और अन्य फसलों के उपज पर मुनाफा अर्जित नही होने से परेशान हैं तो केले की खेती आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है। यह उपजाने में आसान और मुनाफे के मामले में गजब फायदा देने वाला है। अन्य कृषि व्यवसायों की तरह वाणिज्यिक केले की खेती के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता भी नहीं होती है।
देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

नई दिल्ली। - लोकेन्द्र नरवार देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी तमाम योजनाएं संचालित हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाली कैबिनेट में देश के किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किसानों व कृषि के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई गईं हैं। इन योजनाओं के जरिए फसल उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसानों को आर्थिक मदद प्रदान की जा रही है। इसके अलावा देश के किसानों को अपना फसल उत्पादन बेचने के लिए एक अच्छा बाजार प्रदान किया जा रहा है। किसानों के लिए चलाई जा रहीं तमाम कल्याणकारी योजनाओं में समय के साथ कई सुधार भी किए जाते हैं। जिनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को ही फायदा मिलता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा ''आजादी के अमृत महोत्सव'' पर एक पुस्तक का विमोचन किया है। इस पुस्तक में देश के 75000 सफल किसानों की सफलता की कहानियों को संकलित किया गया है, जिनकी आमदनी दोगुनी से अधिक हुई है।


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आइए जानते हैं किसानों के लिए संचालित हैं कौन-कौन सी योजनाएं....

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना ( PM-Kisan Samman Nidhi ) - इस योजना के अंतर्गत किसानों के खाते में सरकार द्वारा रुपए भेजे जाते हैं। ◆ ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई योजना - इस योजना के माध्यम से किसान पानी का बेहतर उपयोग करते हैं। इसमें 'प्रति बूंद अधिक फसल' की पहल से किसानों की लागत कम और उत्पादन ज्यादा की संभावना रहती है। ◆ परम्परागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY)) - इस योजना के जरिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना (पीएम-केएमवाई) - इस योजना में किसानों को वृद्धा पेंशन प्रदान करने का प्रावधन है। ◆ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana - PMFBY) - इस योजना के अंतर्गत किसानों की फसल का बीमा होता है। ◆ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) - इसके अंतर्गत किसानों को सभी रबी की फसलों व सभी खरीफ की फसलों पर सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मूल्य प्रदान किया जाता है। ◆ मृदा स्वास्थ्य कार्ड- (Soil Health Card Scheme) इसके अंतर्गत उर्वरकों का उपयोग को युक्तिसंगत बनाया जाता है। ◆ कृषि वानिकी - 'हर मोड़ पर पेड़' की पहल द्वारा किसानों की अतिरिक्त आय होती है। ◆ राष्ट्रीय बांस मिशन - इसमें गैर-वन सरकारी के साथ-साथ निजी भूमि पर बांस रोपण को बढ़ावा देने, मूल्य संवर्धन, उत्पाद विकास और बाजारों पर जोर देने के लिए काम होता है। ◆ प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण - इस नई नीति के तहत किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराने का प्रावधान है। ◆ एकीकृत बागवानी विकास मिशन - जैसे मधुमक्खी पालन के तहत परागण के माध्यम से फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और आमदनी के अतिरिक्त स्त्रोत के रूप में शहद उत्पादन में वृद्धि होती है। ◆ किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) - इसके अंतर्गत कृषि फसलों के साथ-साथ डेयरी और मत्स्य पालन के लिए किसानों को उत्पादन ऋण मुहैया कराया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (PMKSY))- इसके तहत फसल की सिंचाई होती है। ◆ ई-एनएएम पहल- यह पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म के लिए होती है। ◆ पर्याप्त संस्थागत कृषि ऋण - इसमें प्रवाह सुनिश्चित करना और ब्याज सबवेंशन का लाभ मिलता है। ◆ कृषि अवसंरचना कोष- इसमें एक लाख करोड़ रुपए के आकार के साथ बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है। ◆ किसानों के हित में 10 हजार एफपीओ का गठन किया गया है। ◆ डिजिटल प्रौद्योगिकी - कृषि मूल्य श्रंखला के सभी चरणों में डिजिटल प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग पर जरूर ध्यान देना चाहिए  
अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

स्ट्रॉबेरी (strawberry) एक शानदार फल है। जिसकी खेती समान्यतः पश्चिमी ठन्डे देशों में की जाती है। लेकिन इसकी बढ़ती हुई मांग को लेकर अब भारत में भी कई किसान इस खेती पर काम करना शुरू कर चुके हैं। पश्चिमी देशों में स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जो वहां पर किसानों के लिए लाभ का सौदा है। इसको देखकर दुनिया में अन्य देशों के किसान भी इसकी खेती शुरू कर चुके हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती करना और उसे खरीदना एक स्टेटस का सिंबल है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार दिनोंदिन इस खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। इसके लिए प्रदेश में नई जमीन की तलाश की जा रही है जहां स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सके। [caption id="attachment_10376" align="alignright" width="225"]एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry) एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले उद्यान विभाग की गहन रिसर्च के बाद यह पाया गया है कि प्रयागराज की जमीन और जलवायु स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए पूरी तरह से उपयुक्त है। इसके लिए सरकार ने प्रायोगिक तौर पर कार्य करना शुरू किया है और बागवानी विभाग ने 2 हेक्टेयर जमीन में खेती करना शुरू कर दी है, जिसके भविष्य में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। बागवानी विभाग के द्वारा प्रयागराज की जमीन की स्ट्रॉबेरी की खेती करने के उद्देश्य से टेस्टिंग की गई थी जिसमें बेहतरीन परिणाम निकलकर सामने आये हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़े सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही प्रयागराज में बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती आरम्भ की जाएगी।

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स्ट्रॉबेरी की खेती करना बेहद महंगा सौदा है। लेकिन इस खेती में मुनाफा भी उतना ही शानदार मिलता है जितनी लागत लगती है। स्ट्रॉबेरी की खेती में लागत और मुनाफे का अंतर अन्य खेती की तुलना में बेहद ज्यादा होता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की एक एकड़ में खेती करने में लगभग 4 लाख रुपये की लागत आती है। जबकि इसकी खेती के बाद किसानों को प्रति एकड़ 18-20 लाख रुपये का रिटर्न मिलता है, जो एक शानदार रिटर्न है। प्रयागराज के जिला बागवानी अधिकारी नलिन सुंदरम भट्ट ने बताया कि एक हेक्टेयर (2.47 एकड़) खेत में लगभग 54,000 स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जा सकते हैं और साथ ही इस खेती में ज्यादा से ज्यादा जमीन का इस्तेमाल किया जा सकता है। [caption id="attachment_10375" align="alignleft" width="321"]आधा स्ट्रॉबेरी दृश्य (Half cut strawberry view) आधा स्ट्रॉबेरी आंतरिक संरचना दिखा रहा है (Half cut strawberry view)[/caption] खेती विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती को ज्यादा पानी की जरुरत भी नहीं होती है। यह भारतीय किसानों के लिए एक शुभ संकेत है क्योंकि भारत में आजकल हो रहे दोहन के कारण भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर जा रहा है, जिसके कारण ट्यूबवेल सूख रहे हैं और सिंचाई के साधनों में लगातार कमी आ रही है। इसलिए भारतीय किसान अन्य खेती के साथ स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भी पानी का उचित प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सिंचाई के लिए उपयुक्त मात्रा में पानी की उलब्धता बनाई जा सके।    

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स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए रेतीली मिट्टी या भुरभुरी जमीन की जरुरत होती है। इसके साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 12 से लेकर 18 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान हो तो बहुत ही अच्छा होता है। यह परिस्थियां उत्तर भारत में सर्दियों में निर्मित होती हैं, इसलिए सर्दियों के समय स्ट्रॉबेरी की खेती किसान भाई अपने खेतों में कर सकते हैं और मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। इजरायल की मदद से भारत में अब ड्रिप सिंचाई पर भी काम तेजी से हो रहा है, यह सिंचाई तकनीक इस खेती के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस माध्यम से सिंचाई करने पर सिंचाई की लागत में किसान भाई 30 प्रतिशत तक की कमी कर सकते हैं। इसके साथ ही भारी मात्रा में पानी की बचत होती है। ड्रिप सिंचाई का सेट-अप खरीदना और उसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है। आजकल बाजार में तरह-तरह के ब्रांड ड्रिप सिंचाई का सेट-अप किसानों को उपलब्ध करवा रहे हैं। [caption id="attachment_10377" align="alignright" width="300"]एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (strawberries in a nursery pot) एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (Strawberries in a nursery pot)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी अधिकारियों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में एक एकड़ जमीन में लगभग 22,000 पौधे या एक एक हेक्टेयर जमीन में लगभग 54,000 पौधे  लगाए जा सकते हैं। इस खेती में किसान भाई लगभग 200 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज ले सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती में लाभ का प्रतिशत 30 से लेकर 50 तक हो सकता है। यह फसल के आने के समय, उत्पादन, डिमांड और बाजार भाव पर निर्भर करता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती सितम्बर और अक्टूबर में शुरू कर दी जाती है। शुरूआती तौर पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को ऊंची मेढ़ों पर उगाया जाता है ताकि पौधों के पास पानी इकठ्ठा होने से पौधे सड़ न जाएं। पौधों को मिट्टी के संपर्क से रोकने के लिए प्लास्टिक की मल्च (पन्नी) का उपयोग किया जाता है। स्ट्रॉबेरी के पौधे जनवरी में फल देना प्रारम्भ कर देते हैं जो मार्च तक उत्पादन देते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में भारत में स्ट्रॉबेरी की तेजी से डिमांड बढ़ी है। स्ट्रॉबेरी बढ़ती हुई डिमांड भारत में इसकी लोकप्रियता को दिखाता है। [caption id="attachment_10379" align="alignleft" width="300"]स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry) स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी विभाग ने बताया कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके अंतर्गत सरकार किसानों को स्ट्रॉबेरी के पौधे 15 से 20 रूपये प्रति पौधे की दर से मुहैया करवाने जा रही है। सरकार की कोशिश है कि किसान इस खेती की तरफ ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हो ताकि किसान भी इस खेती के माध्यम से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। सरकार के द्वारा सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जा रहे पौधों को प्राप्त करने के लिए प्रयागराज के जिला बागवानी विभाग में पंजीयन करवाना जरूरी है। जिसके बाद सरकार किसानों को सस्ते दामों में पौधे उपलब्ध करवाएगी। पंजीकरण करवाने के लिए किसान को अपने साथ आधार कार्ड, जमीन के कागज, आय प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, बैंक की पासबुक, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ इत्यादि ले जाना अनिवार्य है। [caption id="attachment_10380" align="alignright" width="300"]पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries) पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries)[/caption] जानकारों ने बताया कि कुछ सालों पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में खास तौर पर सहारनपुर और पीलीभीत में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की गई थी। वहां इस खेती के बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। सबसे पहले इन जिलों के किसानों की ये खेती करने में सरकार ने मदद की थी लेकिन अब जिले के किसान इस मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इसको देखते हुए सरकार प्रयागराज में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने को लेकर बेहद उत्साहित है। सरकार के अधिकारियों का कहना है, चूंकि इस खेती में पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है और पानी का प्रबंधन भी उचित तरीके से किया जा सकता है, इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के साथ लगभग 2 दर्जन जिलों में किया जा रहा है और अब कई जिलों में तो प्रयोग के बाद अब खेती शुरू भी कर दी गई है।
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स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषक सर्वप्रथम खेत की मृदा का की जाँच पड़ताल कराएं। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उपादान करना चाहते हैं, तो खेती की मृदा बलुई दोमट होनी अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है, जो कि आकर्षक दिखने के साथ-साथ बेहद स्वादिष्ट भी होता है। स्ट्रॉबेरी का स्वाद हल्का खट्टा एवं मधुर होता है। बाजार में स्ट्रॉबेरी की मांग बारह महीने होती है। इसी कारण से इसका उत्पादन करने वाले किसान हमेशा लाभ कमाते हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश रबी सीजन के दौरान किया जाता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि इसके बेहतर उत्पादन के लिए जलवायु और तापमान ठंडा होना अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश महाराष्ट्र, जम्मू & कश्मीर, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। परन्तु वर्तमान में किसान नवीन तकनीकों का उपयोग कर स्ट्रॉबेरी का उत्पादन विभिन्न राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों में कर रहे हैं। आगे हम इस लेख में बात करेंगे कि कैसे किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करें और लाभ अर्जित करें।

अन्य राज्य किस तरह से कर रहे हैं स्ट्रॉबेरी का उत्पादन

बतादें, कि आधुनिक तकनीक के सहयोग आज के वक्त में कुछ भी आसानी से किया जा सकता है। खेती-किसानी के क्षेत्र में भी इसका उपयोग बहुत तीव्रता से किया जा रहा है। तकनीकों की मदद से ही कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों के कृषक फिलहाल ठंडे राज्यों में उत्पादित होने वाली स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर रहे हैं। बतादें, कि इन राज्यों के किसान स्ट्रॉबरी का उत्पादन करने हेतु पॉलीहाउस तकनीक का उपयोग करते हैं। पॉलीहाउस में उत्पादन करने हेतु सर्व प्रथम मृदा को सूक्ष्म करना अति आवश्यक है एवं उसके उपरांत डेढ़ मीटर चौड़ाई व 3 मीटर लंबाई वाली क्यारियां निर्मित की जाती हैं। इन क्यारियों में ही स्ट्रॉबेरी के पौधे रोपे जाते हैं।


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स्ट्रॉबेरी का एक एकड़ में कितना उत्पादन हो सकता है

स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषकों को सर्वप्रथम बेहतर मृदा परख होनी आवश्यक है। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करना चाहते हैं, तो उसके लिए भूमि की मृदा का बलुई दोमट होना अत्यंत जरुरी है। साथ ही, किसान यदि 1 एकड़ भूमि में तकरीबन 22000 स्ट्रॉबेरी के पौधे उत्पादित कर सकते हैं। हालाँकि, इन पौधों में जल देने के लिए किसानों को ड्रिप सिंचाई (Drip irrigation) की सहायता लेनी होती है। स्ट्रॉबेरी के पौधे तकरीबन 40 से 50 दिनों के अंतराल में ही फल प्रदान करने लगते हैं।

स्ट्रॉबेरी की अच्छी बाजार मांग का क्या राज है

आपको बतादें कि दो कारणों से स्ट्रॅाबेरी के फल की मांग वर्ष के बारह महीने होती है। इसकी पहली वजह इसकी सुंदरता एवं इसका मीठा स्वाद दूसरी वजह इसमें विघमान बहुत से पोषक तत्व जो सेहत के लिए बहुत लाभकारी साबित होते हैं। यदि बात करें इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों की तो इसमें विटामिन के, विटामिन सी, विटामिन ए सहित फास्फोरस, पोटेशियम, केल्सियम, मैग्नीशियम एवं फोलिक ऐसिड पाया जाता है। स्ट्रॉबेरी के सेवन से कील मुंहासों को साफ किया जा सकता है एवं यह आंखों के प्रकाश एवं दांतों हेतु भी लाभकारी है।
75 फीसद सब्सिडी के साथ मिल रहा ड्रिप स्प्रिंकलर सिस्टम, किसानों को करना होगा बस ये काम

75 फीसद सब्सिडी के साथ मिल रहा ड्रिप स्प्रिंकलर सिस्टम, किसानों को करना होगा बस ये काम

गर्मियों के मौसम में किसानों को सिंचाई में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में राजस्थान सरकार ने किसानों की इस समस्या का हल खोज निकाला है. 

राजस्थान के किसानों को गर्मियों के मौसम में सिंचाई से जुड़ी कोई समस्या ना उठानी पड़े, इसके लिए सरकार ने सूक्ष्म सिंचाई योजना का शुभारम्भ किया है. इस योजना के तहत रजस्थान राज्य के किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सेट पर 75 फीसद तक की सब्सिडी देने का फैसला किया है. 

भारत के ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां का तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा है. गर्मियों की आहट के बीच किसानों के दिमाग में सिंचाई को लेकर चिंता भी पनपने लगी है. क्योंकि गर्मियों के मौसम में किसानों को सिंचाई के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है.

हालांकि कई इलाकों के भूजल स्तर काफी गिर चुका है, जिसके वजह से सिंचाई नहीं हो पाती और फलस्वरूप फसलें भी सूख जाती हैं. जिसे देखते हुए कई राज्य सरकारों ने चिन्तन करना भी शुरू कर दिया है, और सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए तरह तरह के कार्यक्रमों की भी शुरुआत कर दी है.

  • राजस्थान सरकार ने चलाई स्कीम

राजस्था सरकार ने किसानों की परेशानी को देखते हुए एक खास स्कीम चलाई है. जिसमें किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सेट की क्रीड पर 75 फीसद तक की भारी सब्सिडी देने का ऐलान कर दिया है.

  • लाखों किसानों को होगा फायदा

राजस्थान सरकार की इस स्कीम के तहत राज्य के हर तबके के किसानों को फायदा मिलेगा. इतना ही नहीं सरकार ने अपने नये साल के कृषि बजट मरीं लगभग 4 लाख किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर पर भारी अनुदान देने का फैसला किया है. 

इतना ही नहीं लाखों किसानों को सूक्ष्म सिंचाई मिशन के जरिये लाभान्वित कराया जाएगा. इस स्कीम का लाभ लेने के लिए आवेदान करने वाले एससी एसटी, लघु सीमांत और महिला किसानों को 75 फीसद अनुदान मिलेगा वहीं अन्य वर्ग के किसानों को लगभग 70 फीसद तक की सब्सिडी दी जाएगी.

इन शर्तों का रखना होगा ख्याल

  • इस योजना का लाभ राजस्थान के किसान ही ले सकते हैं.
  • सूक्ष्म सिंचाई योजना का लाभ लेने के लिए आवेदक किसान राजस्थान का स्थाई निवासी होना जरूरी है.
  • किसान के बॉस 0.2 हेक्टेयर और 5 हेक्टेयर खेती के लायक जमीन होनी जरूरी है.
  • अगर किसान के खेत में कुएं, नलकूप, बीजली, डीजल, सोलर पंप जैसे जल स्रोत लगे होने पर ही सूक्ष्म सिंचाई संयंत्र स्थापित किये जाएंगे.

जानिए कैसे करेंगे आवेदन?

  • अगर किसान सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत इसका लाभ लेना चाहता है,न तो सबसे पहले राज किसान साथी पोर्टल पर विजिट करके ऑनलाइन आवेदन करना होगा.
  • किसानों को अपनी पर्सनल डिटेल के साथ साथ बैंक की पासबुक की कॉपी और जमीन की जमाबंदी की कॉपी भी अपलोड करनी होगी.
  • आदार कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, बिजली कनेक्शन प्रमाण पत्र, आधार से लिंक हुआ मोबाइल नंबर आदि भी उपलोड करना होगा.
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इस मामले में पहले पायदान पर है राजस्थान

राजस्थान को रेतीली, बंजर और अनुपजाऊ जमीन से पहचाना जाता था. लेकिन समय के साथ साथ स्थितियों में काफी सुधार किया गया, और यहां की बंजर जमीन से भी लोग खूब पैसा कमा रहे हैं. 

वहीं सोलर सिंचाई पंप ने भी राज्य के कृषि क्षेत्र को नये पंख लगा दिए. सोलर पंप की स्थापना में राजस्थान पहले पायदान पर है. वहीं सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत जल संरक्षण का काम भी बेहद आसान हो चुका है. 

रिपोर्ट्स के मुताबिक राजस्थान पूरे देश भर में मात्र के ऐसा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा सिंचाई यंत्र स्थापित किये गये हैं. राजस्थान में भले ही पानी का स्तर काफी नीचे क्यों ना हो, लेकिन नई सिंचाई तकनीक की वजह से पानी की बचत के साथ फसल की अच्छी उत्पादकता को बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं.

इस राज्य में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था हेतु मुहैया कराई गई 463 करोड़ रुपए

इस राज्य में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था हेतु मुहैया कराई गई 463 करोड़ रुपए

किसानों की दोगुनी आमदनी करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से हर संभव प्रयास कर रही हैं। इसी कड़ी में राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से किसानों को सुविधा और राहत दिलाने के लिए 463 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी गई है। इसके तहत डिग्गी, फार्म पौण्ड एवं सिंचाई पाइपलाइन आदि कार्य को पूर्ण किया जाएगा। राजस्थान सरकार प्रदेश के किसान भाइयों को मजबूती पहुंचाने हेतु लगातार कोशिशें करते रहते हैं। इसके चलते विगत कुछ माहों से राज्य सरकार प्रदेश में स्वयं की समस्त योजनाओं पर कार्य कर लोगों की सहायता कर रही है। हाल ही, में सरकार द्वारा आम जनता के लिए CNG और PNG के मूल्यों में भी काफी गिरावट देखने को मिली है। सिर्फ इतना ही नहीं राज्य हेतु सरकार नित नए दिन कुछ न कुछ नवीन पहल कर रही है। इसी कड़ी में अब राज्य सरकार द्वारा सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था को और ज्यादा मजबूत करने का फैसला लिया है।

सरकार कितने करोड़ की धनराशि अनुदान स्वरुप किसानों को प्रदान कर रही है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा राज्य में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था को ज्यादा सुदृढ़ करने के लिए डिग्गी, फार्म पौण्ड और सिंचाई पाइपलाइन आदि कार्यों हेतु 463 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। साथ ही, सरकार की तरफ से अधिकारीयों को यह निर्देश भी दिए गए हैं, कि इस परियोजना पर शीघ्रता से कार्य चालू किया जाना चाहिए। यह भी पढ़ें: सिंचाई की नहीं होगी समस्या, सरकार की इस पहल से किसानों की मुश्किल होगी आसान

लाभन्वित किसानों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी

इसके अतिरिक्त आगामी 2 वर्षों में फार्म पौण्ड निर्माण करने हेतु लगभग 30 हजार किसानों को लाभान्वित करने की संख्या में वृद्धि कर दी जाएगी। इस बार सरकार का यह उद्देश्य रहेगा कि फार्म पौण्ड निर्माण के लिए कृषकों की संख्या तकरीबन 50 हजार तक कर दिया गया है।

सरकार किसको अनुदान मुहैय्या कराएगी

यदि आप भी राजस्थान के रहने वाले हैं, तो आप आसानी से इस सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था का फायदा प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि उपरोक्त में आपको कहा गया है, कि राज्य में किसानों की सहायता करने के लिए सरकार डिग्गी, फार्म पौण्ड एवं सिंचाई पाइपलाइन से संबंधित कार्य हेतु लगभग 463 करोड़ रुपए का खर्चा करने का प्रस्ताव जारी कर दिया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं सरकार द्वारा यह भी कहा गया है, कि इस सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था के तहत एससी, एसटी के गैर लघु-सीमांत किसान भाइयों को तकरीबन 10 प्रतिशत से अतिरिक्त अनुदान की सहायता प्रदान की जाएगी। बतादें, कि इस संदर्भ में राजस्थान सरकार के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर भी जानकारी प्रदान की गई है। जिससे कि प्रदेश की इस सुविधा के विषय में प्रत्येक किसान भाई को पता चल सके।
इन तकनीकों से उत्पादन कर किसान कमा रहे हैं मोटा मुनाफा

इन तकनीकों से उत्पादन कर किसान कमा रहे हैं मोटा मुनाफा

पारंपरिक खेती करके किसान भाई केवल किसानों की आजीविका ही चलती थी। लेकिन, खेती की आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके किसानों की आमदनी काफी बढ़ती जा रही है। यह तकनीकें कृषकों का धन, समय और परिश्रम सब बचाती हैं। इसलिए किसानों को फिलहाल आधुनिक एवं उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके उत्पादन करने की बेहद आवश्यकता है। आधुनिकता के वक्त में हमारी खेती भी अग्रिम होती जा रही है। क्योंकि विज्ञान द्वारा इतनी प्रगति कर ली गई है, कि फिलहाल नवीन तकनीकों से संसाधनों की बचत के साथ-साथ लाभ अर्जित करना भी सुगम हो गया है। इस कार्य में नवीन मशीनें एवं तकनीकें किसानों की हेल्पिंग हैंड की भूमिका अदा कर रही हैं।

ड्रिप सिंचाई तकनीक से करें उत्पादन

संपूर्ण विश्व जल की कमी से लड़ रहा है, इस वजह से किसानों को
सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों की तरफ प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस तरीके की तकनीकें जो कम सिंचाई में भरपूर पैदावार मिलती है। सूक्ष्म सिंचाई में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर तकनीक शम्मिलित हैं। इन तकनीकों द्वारा सीधे फसल की जड़ों तक जल पहुंचता है। ड्रिप सिंचाई से 60 प्रतिशत जल की खपत कम होती है। फसल की पैदावार में भी काफी वृद्धि देखी जाती है।

वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से खेती करें

संपूर्ण विश्व में खेती का रकबा कम होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में बढ़ती जनसंख्या की खाद्य-आपूर्ति करना कठिन होता जा रहा है। यही कारण है, कि विश्वभर में वर्टिकल फार्मिंग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वर्टिकल फार्मिंग को खड़ी खेती भी कहा जाता है, जिसमें खेत की आवश्यकता नहीं, बल्कि घर की दीवार पर भी फसलें उत्पादित की जा सकती हैं। यह खेती करने का सफल तरीका माना जाता है। इसके अंतर्गत न्यूनतम भूमि में भी अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं। इससे पैदावार भी ज्यादा होती है। यह भी पढ़ें: कम जमीन हो तो इजराईली तकनीक से करें खेती, होगी मोटी कमाई

शेड नेट फार्मिंग के जरिए करें खेती

जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों से खेती-किसानी में हानि होती जा रही है। बेमौसम बारिश,ओलावृष्टि, आंधी, सूखा और कीट-रोगों के संक्रमण से फसलों में काफी हद तक हानि हो रही है, जिसको कम करने हेतु किसानों को शेडनेट फार्मिंग से जोड़ा जा रहा है। पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव फसलों पर ना पड़े, इस वजह से ग्रीनहाउस, लो टनल, पॉलीहाउस जैसे संरक्षित ढांचे स्थापित किए जा रहे हैं। इनमें गैर मौसमिक बागवानी फसलें भी वक्त से पहले उत्पादित हो जाती हैं।

हाइड्रोपोनिक तकनीक के माध्यम से खेती करें

हाइड्रोपॉनिक तकनीक के अंतर्गत संपूर्ण कृषि जल पर ही निर्भर रहती है। इसमें मृदा का कोई कार्य नहीं है। आजकल विभिन्न विकसित देश हाइड्रोपॉनिक तकनीक से बागवानी यानी सब्जी-फलों का उत्पादन कर रहे हैं। भारत में भी शहरों में गार्डनिंग हेतु यह तकनीक काफी प्रसिद्ध हो रही है। इस तकनीक के माध्यम से खेत तैयार करने का कोई झंझट नहीं रहता है। एक पाइपनुमा ढांचे में पौधे स्थापित किए जाते हैं, जो पानी और पोषक तत्वों से बढ़ते हैं एवं स्वस्थ उत्पादन देते हैं।

ग्राफ्टिंग तकनीक के माध्यम से खेती करें

आजकल बीज समेत पौधे उगाने में बेहद वक्त लग जाता है, इस वजह से किसानों ने ग्राफ्टिड पौधों से खेती शुरू कर दी है। ग्राफ्टिंग तकनीक के अंतर्गत पौधे के तने द्वारा नवीन पौधा तैयार कर दिया जाता है। बीज से पौधा तैयार होने में काफी ज्यादा समय लगता है। ग्राफ्टिड पौधे कुछ ही दिनों के अंदर सब्जी, फल, फूल उत्पादित होकर तैयार हो जाते हैं। आईसीएआर-वाराणसी द्वारा ग्राफ्टिंग तकनीक द्वारा ऐसा पौधा विकसित किया है, जिस पर एक साथ आलू, बैंगन और टमाटर उगते हैं।
यह राज्य सरकार बकाये गन्ना भुगतान के निराकरण के बाद अब गन्ने की पैदावार में इजाफा करने की कोशिश में जुटी

यह राज्य सरकार बकाये गन्ना भुगतान के निराकरण के बाद अब गन्ने की पैदावार में इजाफा करने की कोशिश में जुटी

गन्ना की फसल एक सालाना फसल है। इसके तैयार होने में कृषि जलवायु क्षेत्र के अंतर्गत होने वाली वर्षा के अनुरूप 3 से 7 बार जल की आवश्यकता होती है। उत्तर प्रदेश के लगभग 46 लाख गन्ना कृषकों का फायदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अपने प्रथम कार्यकाल से ही सबसे बड़ी प्राथमिकता रही है। योगी जी के दूसरे कार्यकाल में भी यह सिलसिला उसी ढ़ंग से चल रहा है। केवल आवश्यकता के मुताबिक प्राथमिकताएं परिवर्तित की जा रही हैं। बकाए, मिलों के संचलन की व्यवस्था को बेहतर करने के पश्चात सरकार का ध्यान फिलहाल गन्ने की खेती को और अधिक फायदेमंद बनाने पर है। अब इस बात को साकार तभी किया जा सकता है। जब पैदावार में वृद्धि के साथ-साथ लागत में कमी आएगी। इसके लिए खेती में निवेश की सामर्थ के साथ बेहतरीन संसाधनों की उपलब्धता है।

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फसल की तैयारी में कितने जल की आवश्यकता होती है

जैसा कि हम जानते हैं, कि गन्ना एक वर्षभर की फसल है। एक अनुमान के अनुसार, गन्ने की फसल को 1500 से 2500 मिलीमीटर जल की आवश्यकता होती है। बतादें, कि प्रति किलोग्राम गन्ना की उपज में 1500 से 3000 हजार लीटर जल की आवश्यकता होती है। इतना तो तब है, जब कृषक अपने खेत की परंपरागत ढ़ंग से पोखर, नलकूप, पंपिगसेट और तालाब से सिंचाई करते हैं। इस प्रकार सिंचाई करने से आधा से ज्यादा जल की बर्बादी हो जाती है। अगर खेत पूर्णतय समतल नहीं है, तो कहीं कम और कहीं ज्यादा जल लगने से फसल में नुकसान हो जाता है।

ड्रिप इरीगेशन बच पाएगी 50 प्रतिशत जल खपत

ड्रिप इरीगेशन (टपक प्रणाली) से कम समय में हम फसल को आवश्यकतानुसार पानी देकर पानी की बर्बादी सहित सिंचाई का खर्चा भी बढ़ा सकते हैं। यही कारण है, कि सरकार का ड्रिप एवं स्प्रिंकलर तरीके से सिंचाई पर काफी ध्यान केंद्रित है। इसके लिए योगी सरकार लघु सीमांत कृषकों को निर्धारित रकबे के लिए 90 प्रतिशत और अन्य कृषकों को 80 प्रतिशत तक अनुदान देती है।

ड्रिप सिंचाई हेतु योगी सरकार अनुदान मुहैय्या करा रही है

इसी कड़ी में गन्ना विभाग की तरफ से भी एक कवायद की गई है। वह ड्रिप इरीगेशन से बेहतरीन उत्पादन पाने के लिए कृषकों को 20 प्रतिशत ब्याज मुक्त लोन प्रदान करेगी। बतादें, कि इसकी अदायगी गन्ना मूल्य भुगतान से हो सकेगी। यह लोन किसानों को चीनी मिलें और गन्ना विकास विभाग उपलब्ध कराने में मदद करेगा। इससे राज्य के 90 प्रतिशत से ज्यादा गन्ना उत्पादक किसानों को लाभ मिलेगा। यह किसानों का वही वर्ग है, जो चाहते हुए भी संसाधनों के अभाव के चलते खेती में यंत्रीकरण का अपेक्षित फायदा प्राप्त नहीं कर पाता है। दरअसल, ज्यादा श्रम एवं संसाधन लगाने के बावजूद भी उसको कम फायदा उठा पाते हैं।

टपक सिंचाई से कम लागत में अधिक उपज के साथ होंगे विभिन्न फायदे

ड्रिप इरिगेशन एक फायदेमंद तकनीक है। जल की अत्यधिक खपत के अतिरिक्त प्रत्यक्ष तौर पर पौधों की जड़ों में घुलनशील उर्वरक भी दे सकते हैं। इस प्रकार से खाद के पोषक तत्वों की प्रचूर मात्रा में आपूर्ति के चलते गन्ने की पैदावार में भी वृद्धि होगी। दरअसल, इसके माध्यम से सिंचाई करने में जल की खपत कम, श्रम की बचत साथ ही न्यूनतम खाद के इस्तेमाल से पैदावार भी अच्छी होती है। परिणामस्वरूप, कम लागत और अधिक पैदावार की वजह से कृषकों की आमदनी में वृद्धि होगी। यूपी सरकार की यह प्राथमिकता भी है। इसी कड़ी में यूपी शुगर मिल्स असोसिएशन एवं विश्व बैंक के संसाधन समूह के मध्य एक मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग भी हो गई है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना विकास कोष की स्थापना की है

इसी प्रकार खेत की तैयारी से लेकर रोपाई एवं उससे आगे गन्ना उत्पादकों हेतु संसाधन बाधक बनें। इस बात को लेकर सरकार द्वारा गन्ना विकास कोष स्थापित करने का भी फैसला लिया गया है। इसमें भी नाबार्ड की भाँति 10.70. इस पर 3.70 प्रतिशत की छूट भी होगी। यह कर्जा उन लघु सीमांत किसानों को मिल पाएगा जो गन्ना समितियों में पंजीकृत होंगे।

6 वर्ष में कितने गन्ना उत्पादकों का भुगतान किया गया है

योगी जी ने जब मार्च 2017 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी। उस वक्त गन्ने का बकाया, संचलन में चीनी मिलों का मनमानी आचरण गन्ना कृषकों की प्रमुख परेशानी थी। क्योंकि, इसकी खेती से लाखों की संख्या में किसान परिवार जुड़े हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जनपदों की मुख्य फसल ही गन्ना है। दरअसल, गन्ना मूल्य के बकाए पर ही कुछ लोगों की राजनीति चलती थी। क्योंकि, यह किसानों का एक प्रमुख मुद्दा है। मिलों की मनमानी से किसानों को इस हद तक परेशानी थी, कि किसान अपने खेत में ही गन्ना को आग लगा देते थे।

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एक मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ ने अपने प्रथम कार्यकाल में गन्ना किसानों के भुगतान पर ध्यान केंद्रित किया था। नतीजतन, गन्ना उत्पादकों को रिकॉर्ड भुगतान हुआ। मुख्यमंत्री जी के प्रथम कार्यकाल समापन के बाद अब दूसरे कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण होने पर जारी किए गए आकड़ों के अनुसार, गन्ना किसानों को दो लाख दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया जा चुका है। जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। सरकार की तरफ से मिलर्स को साफ निर्देशित किया गया है, कि जब तक किसानों के खेत में गन्ना मौजूद है, तब तक मिलें बंद नहीं की जाऐंगी। इसके अतिरिक्त भुगतान की समयावधि भी निर्धारित की गई है। ऑनलाइन भुगतान के माध्यम से इसको पारदर्शी भी बनाया गया है।